रिव्यू :
यह एक ऐसी चलचित्र है , जो आपको हाशियो पे रहने वालों की परिस्थितियों को सामने प्रस्तुत करती है , हालांकि अगर आप रोज़मर्रा की ज़िंदगी से परिचित है तो कहानी कुछ नया नहीं कहती , जाती है और जातीय भेदभाव है , लेकिन इसके आगे क्या ,अगर तुष्टिकरण को दिखाना है, तो इसके गहराई मैं जाइए , किस तरह हर कोई आपस में यह कर रहा है,चाहे ऊपर हो या नीचे , उसका क्या और उसका क्या प्रनिआम होता है। रेप और लड़की की कहानी कभी कभार सिर्फ एक कहानी बढ़ाने का साधन रह जाती है , फिल्मों को लड़कियों और रेप को उस चीज को करने से अब रोकना चाहिए , इससे आगे कहानी जाती नहीं, जहां अनुभव सिन्हा के निर्देशन की कमजोरी का पता चलता है, केवल राजनीतिक कहानी से कोई च्चलचित्रा अच्छा नहीं ही जाता , उसका प्रस्तुीकरण भी ध्यान में रखना चाहिए ।
आयुष्मान ने अच्छा कार्य किया , मनोज पाहवा और अतरिक्त
कलाकार भी अपने चरित्र पर जांचते है .।
कहानी एक डॉक्यूमेंट्री ड्रामा ज़्यादा लगती है , और कुछ जगह आपको सोच में डालती है , रहस्य और पटकथा पर काम किया जा सकता था , एक बार जरूर देखा जा सकती है।
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