Okay..So jab kuch 2 saal pehle maine articles likhne ki practice shuru ki thi kyunki everyone known what importance Answer Writing holds in UPSC. To bade shauk m maine nai dairy lai par fir socha pehla article kuch alag likhna hai...to kyu na Maa pe likha jaye
Travel experiences ko lekar bhi mere pas ek thought hai par abhi time nai mil raha mereko😔
Filhaal ke liye ye🤗😎
माँ
माँ एक अक्षर का शब्द है पर जब बोलते और सुनते है तो लगता है जैसे सारा संसार इस छोटे से शब्द मे समाया हुआ हो। भगवान को भी धरती पर आने के लिए माँ का सहारा लेना पड़ा था। ईश्वरीय अभिव्यक्ति हैं 'माँ'।❤️
माँ की ममता की तुलना संसार की किसी और भावना से नहीं की जा सकती क्योंकि एक माँ जन्म से पहले ही अपने बच्चे को प्रेम करने लगती है जो अन्य किसी रिश्ते मे संभव नहीं। माँ अपने हर बच्चे को उसके गुण अवगुण से परे जाकर एक समान प्रेम करती हैं। हम अपने शिक्षा की पहली सीढ़ी अपने मां के चरणों से ही शुरू करते हैं, वो हर पल हमारे चरित्र को परिभाषित करती हैं। माँ के लिए उसके बच्चे उसका एक टुकड़ा होते है, उसके व्यक्तित्व का विस्तार होते हैं। माँ जीवन की सबसे उत्तम शिक्षक हैं।🧑🏫 माँ वह उल्लास हैं जिसके मात्र घर में रहने से घर का वातावरण स्वर्गीय हो जाता हैं।⭐️
माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा है क्योंकि माँ ने अवसर दिया है गुरु और ईश्वर तक जाने का, भोग और मोक्ष पाने का। ममता से बड़ा कोई पुण्य नहीं । सन्तान के लिए माँ अपना अस्तित्व मिटा सकती है, माँ के बारे में केवल इतना ही जानना काफी है कि वह माँ है , भले ही सन्तान को पालने के लिए उसे वेश्या ही क्यों न बनना पड़े !
स्कूल-कॉलेज 'विवेक' नहीं सिखाते, विवेक पहले से कुण्डली में होता है जिसे माँ जगाती है | माँ की सेवा करेंगे तो विवेक बढेगा | जो आपका वहन करती है, अपना कष्ट चुपचाप सहती है, क्योंकि सन्तान को सुख मिले इसी में माँ को असली सुख मिलता है जिसके आगे माँ का व्यक्तिगत सुख-दुःख फीका हो जाता है | यही कारण है कि पुरुष बहुत तपस्या करे तब महापुरुष बन पाता है, माता तो वैसे ही "महिला" है क्योंकि मातृत्व में ही "मह्" छुपा है जो किसी को महापुरुष बनाता है |
"माता" शब्द का धातु है "मा" जिसका अर्थ है "जो सन्तानों को इस संसार में उचित भोग मापकर दे" | गोस्वामी तुलसीदास की कविता का कुछ अंश हैं-
"ममते तू न गयी मेरे मन ते
तन काँपे कर कम्पन लागे
ज्योति गयी नैनन ते....
ममते...."❤️❤️
"माँ" पर सबसे श्रेष्ठ साहित्य किसने लिखा हैं ?
आदिकवि ने -- समाज द्वारा बदचलन कहकर वन में सीता माता ने किस प्रकार लव-कुश जैसे सिंह-शावक तैयार किये... ... और जब समाज ने भूल सुधारकर सम्मानित करना चाहा तो धरती माता की गोद में जाना बेहतर समझा | रामजी तो "राजा" की मर्यादा स्थापित करने के लिए आये थे, प्रजा का रंजन करना अपना कर्तव्य मानते थे, उनका कोई दोष नहीं था | दोष था कलियुगी "प्रजा" का जो माता को नहीं पहचान सकी।
कुण्ड से निकली द्रौपदी जैसी दिव्य माता के अपमान ने महाभारत कराया | उनके पाँच पति दिव्य सम्बन्ध वाले थे, शारीरिक सम्बन्ध से द्रौपदी पैदा ही नहीं हुई थी यह आज के कलियुगी हिन्दू नहीं समझते |
कालिदास ने -- किस प्रकार सम्राट दुष्यन्त द्वारा अनजाने में परित्यक्ता ने अपमानित होने पर वनदेवी की शरण ली और भरत जैसा नरसिंह तैयार किया |
कितने हिन्दुओं ने ऐसे दिव्य ग्रन्थ पढ़ें हैं ? मानवता सिखाने वाले ग्रन्थों से हिन्दू दूर रहते हैं ।
आदि माता हर प्राणी के भीतर छुपी हैं | दुर्गम हैं, दुर्गा हैं | किसी भी नारी के प्रति "वासना" से वे कुपित होती हैं, भले ही पत्नी के प्रति ही हो | पत्नी को हिन्दुत्व में "धर्म-पत्नी" कहा गया है, उसके बिना यज्ञ करने का अधिकार नहीं मिलता |
अक्सर मैं सोचती हु कि एक कमजोर काया वाली, भोली भाली सी मेरी मम्मी एक समय में इतना सब कुछ कैसे कर लेती हैं। अपना पूरा दिन परिवार को देने के बाद अपने लिए समय नहीं निकाल पाने के बाद भी उनके चेहरे पे कभी अफसोस नही देखा मैंने। बस होती हैं एक प्यारी सी मुस्कान जो उनको और सुंदर बनाती हैं।☺️
स्त्री अपने जीवनकाल में पत्नी, बहु, बहन, बेटी न जाने कितने रिश्ते निभाती हैं पर मां के रूप का सम्मान सबसे अधिक हैं। मां के त्याग, समर्पण को समझना बहुत कठिन हैं।
कभी कभी मैं सोचती हु कि क्या मैं कभी अपनी मम्मी जितनी समझदार, सबको इतना प्यार करने वाली, जिनका सारा समय सिर्फ हमारे लिए है, जो कभी अपने बारे में न सोचकर बस उनके बच्चे खुश रहे ऐसा सोचती हो, निस्वार्थ, सहनशील बन पाऊंगी?😔
मैं कभी अपनी मम्मी के प्रेम का ये ऋण नहीं उतर पाऊंगी, सदा सदा उनकी ऋणी रहूंगी, उन्होंने अपने निर्मल प्रेम से मुझको अपने बंधन में बांध लिया हैं।
Itna cut Kiya fir bhi itna bada hogaya😔
Edited by BossLady - 3 years ago