जन्नत की परी हूँ मैं
जन्नत की परी हूँ मैं,पर धरा पर रहती हूँ
हर मानव के जिस्म में, मैं जान बनकर बहती हूँ
मत दो सिर्फ मुझे तुम नाम एक अबला का
रोशन करती जो जहान को,मैं वो रोशनी हूँ
मैं सिर्फ एक औरत नही,मैं जिंदगी हूँ
मैं ही हर हाथ की लकीर लिखती हूँ
मैं ही धरा की नई तकदीर लिखती हूँ
पर शायद मैं खुद अपना ही भाग्य लिख ना पाई
ध्यान से समझो मुझे,मैं रब की बंदगी हूँ
मैं सिर्फ एक औरत नही,मैं जिंदगी हूँ
हर वक्त रहती है मेरे रुख पर सोच,उदासी
मैं नीर होकर भी अकसर रह जाती प्यासी
लाखों बरस बीते,पर सोच ना बदली जमाने की
जो कभी पूरी नही होती,मैं वो तिशनगी हूँ
मैं सिर्फ एक औरत नही,मैं जिंदगी हूँ
अकसर हो जाती मैं जमाने की हवस का शिकार
ढेरों कानून आये,पर मैं ढूंढती रहती अपने अधिकार
पतझड़ का मौसम,मत समझो मुझे मेरे प्यारों
जो महकाती सदा घर आँगन को,मैं वो ताजगी हूँ
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मैं सिर्फ एक औरत नही,मैं जिंदगी हूँ
मैं हर जिस्म में अदभुत जां बनकर रहती
मैं कभी बहु, कभी बेटी,कभी माँ बनकर रहती
जो सदा अपनों पर जान लुटाने को रहती आतुर
मैं वो दिवानगी, वो आवारगी,वो सादगी हूँ
मैं सिर्फ एक औरत नही,मैं जिंदगी हूँ
नीरज रतन बंसल'पत्थर'
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